Monday, August 29, 2011

सड़क पर हजारो हजारे

देर रात तक टीवी देखने के बाद जैसे ही सुबह 7 बजे नींद खुली देखा मोबाइल पर अन्ना समर्थको के दिन भर के कार्यक्रमों से मसेज बॉक्स भरा पड़ा है हर कोई समर्थन में प्रदर्शन करना चाह रहा है और उसकी कवरेज भी ऐसी चाह रहा है की दिन भर अन्ना की तरह टीवी स्क्रीन पर वही आये .. तैयार होकर निकलने की कोशिश की तो कुछ मित्र आ गये और अन्ना मुद्दे पर बहस छेड़ दी जैसे उन्होंने ही अन्ना के साथ बैठ कर ये जन्लोकपाल बनाया हो, इनसे किसी तरह पीछा छुड़ाया और आगे बढ़ा, मेरे घर से व्यस्त शहर की दूरी मात्र ३ किलोमीटर है जिसे मैंने 30 मिनट में तय की कारण गाँधी टोपी धारी जो पैदल जा रहे थे बार बार गाड़ी के सामने आकार इन्कलाब जिंदाबाद के बीच बीच मेरी फोटो ठीक से लेना जैसे नारे भी लगा रहे थे , अमूमन हर प्रदर्शन में ज्यादातर नेता होते हैं हैं और उन्हें कैमरे की ताकत पता होती है लेकिन यहाँ तो आम हिन्दुस्तानी था फिर कैमरे उनको क्यू आकर्षित कर रहे हैं ये सवाल मन में उठ रहा था, सवाल मन में हो और जवाब न मिले ऐसी बेचैनी कभी न कभी आपको भी हुई होगी..
उस भीड़ को देखने समझने से ही उलझन शांत हो सकती थी सो चाय की चुस्की के साथ लोगो को जरा गौर से देखना शुरू किया एक गाँधी टोपी लगाये हुए रौबदार चेहरे पर नजर रुकी तो दिमाग के सर्च इंजन ने कुछ सेकंडों में उसका पूरा बायोडाटा सामने पेश कर दिया जनाब कुछ दिन पहले ही सरकारी मेहमान नवाजी से लौटे थे कारण था प्रोपर्टी के विवाद में अपने ही बड़े भाई को मौत की नींद सुलाने का लेकिन आज अगर आसाराम बापू या श्री श्री रविशंकर जी मौके पर होते तो निश्चित ही इनके शिष्य बन जाते ...
भीड़ दूसरी तरफ से भी आ रही थी जिनके हाथो में तिरंगे थे बच्चे शायद इसलिए जुड़ते हैं क्यों की उन्हें अनुशाशन तोड़ने की आजादी मिलती है वानर सेना का नाम सुना था देख कर मजा आया, बुजुर्गो को एक मुद्दा मिलता है जिसमे जिन्दगी भर के अनुभवों को जोड़कर काफी समय काटा जा सकता है कोई रिटायर्ड अधिकारी है तो कोई बाबू कल तक जो अन्ना को जानते नहीं थे वो आज उन पर घंटो बोल सकते हैं लेकिन इनके बीच जो मौका परस्त घुस आये हैं उनको पहचानने की जरुरत है लोगो से ठगी करनेवाले सख्स भी थे इसमें जिनके कारनामे सुनकर विश्व के प्रसिद्द ठग नटवरलाल भी शरमा जाते लेकिन आज उनकी ही आवाज बुलंद थी . अन्ना बेशक बेदाग हैं लेकिन उनके चेहरे की उजली चमक में कई काले चेहरे वाले खुद को पाक करने की कोशिश कर रहे हैं ये उन्हें भी ध्यान देना चाहिए भीड़ में कोई रिश्वत खोर तो कोई बेईमान है.. ढूँढने में शायद ही इसमें कोई अन्ना जैसे निकले लेकिन मैं अन्ना हूँ की टोपी हर सर पर मिल जाएगी और खास कर जब मीडिया के कैमरे चमक रहे हों तो .....

Wednesday, August 10, 2011

दुश्मन हो ... तो ज़रा धीरे चलो वरना !!!!!!

4 जून शायद कम लोगो को याद रहे लेकिन कुछ तो चाह कर भी नहीं भूल पाएंगे, जो भारत की राजधान्मी डेल्ही में रामलीला मैदान में एक साधू के बहकावे में आ टपके थे , किसी के हाथ टूटे किसी के पैर कोई छुप गया तो कोई भाग गया .. सत्तामठो को ब्लैक मेल करने की चाहत और राजनीती के पिछले गलियारे से इंट्री कर किंग मेकर बनने की ख्वाइश इस कदर ले डूबेगी इसका अंदाज़ा गेरुआ चोला धारक को बिलकुल नहीं था ..रही बात पूरे मामले में मीडिया की भूमिका की तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री से फूटे प्रवाह में पत्रकारिता के मानदंड या तो बह गए या किनारे लग गए जो कुछ एक बचे हैं वो इतने हताश निराश और टूट चुके हैं की उनकी कलम अंगार उगलने के काबिल ही नहीं बची, हिम्मत दीखाने वाले पर या तो दनदनाती गोलिया चलती है या उन्हें इतना प्रताड़ित कर दिया जाता है की सच लिखने की परिभाषा तक भूल जाता है सच को लिखने के अक्षम्य अपराध में मुंबई के एक पत्रकार की हत्या और लखनऊ के दो संवाददाताओं पर हमला जल्द ही हुआ है ... कालाधन हमारे देश के लोगों के खून पसीने की कमाई है जिसे वापस लाने के लिए अकेले रामदेव नहीं देश की मीडिया और सभी पार्टियों के लोगो को एक माहौल बनाना चाहिए .. जो विदेश में काला धन जमा कर सकते हैं वो अपने भारत के अन्दर अपने धन के जरिये अस्थिरता पैदा कर सकते है ये बाबा को सोच कर ही ताल ठोकनी चाहिए थी.. ज्यादा चालाकी के चक्कर में अकेले पड चुके बाबा का साथ तो अन्ना हजारे ने भी दिल से नहीं दिया ,कालेधन के खातेदार बाबा की राजनैतिक नौसिखियेपन का फायदा उठाते हुए कुछ सफेदपोशो के जरिये इन्हें सबक सिखाने के लिए मैदान में कूड़े लेकिन परदे के पीछे से..लेकिन बाबा को जब तक समझ में आता की उन्होंने सांप के बिल में हाथ ड़ाल दिया है तब तक उस सांप ने उन्हें डस भी लिया और जहर उनके सबसे करीबी तक पहुच गया .. केंद्र की कठपुतली CBI की पीठ तो वाकई ठोकने लायक है क्यू की इसको चालाने के लिए ऊँगली का भी इस्तेमाल नहीं करना पड़ता शायद इन्हें भर्ती के दौरान ही सत्ता के इशारे समझने की ट्रेनिंग भी दी जाती है लेकिन सच तो ये है की दाग इधर भी हैं जो योग से हासिल प्रतिष्ठा में अब तक छुपे थे ,पतंजलि योगपीठ के प्रमुख रामदेव और बालकृष्ण का विवादों से पुराना नाता है बाबा की दवाओं कंपनियों और बालकृष्ण की नागरिकता , पासपोर्ट पर सवाल पहले भी उठ चुके हैं पर 4 जून के पहले इनकी जाँच करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई और ये मामले सिर्फ फाइलों में कैद होकर धुल चाटते रह गए ..
हरिद्वार के कनखल स्थित त्रिपुरा योग आश्रम से रामदेव बालकृष्ण ने योग सिखाने की शुरुआत की धीरे धीरे ये तिकड़ी हरिद्वार के दिव्या योग मंदिर के अध्यक्ष शंकरदेव की शरण में पहुचे जहाँ इस कला का जमकर विस्तार किया सच तो ये है की रामदेव की डीलिंग पावर और बालकृष्ण की चतुराई ने इन्हें कम समय में ही असमान की बुलंदियों तक पंहुचा दिया चूंकि रामदेव और बालकृष्ण ये जान गए थे की वही इस ख्याति के मुख्या अधिकारी हैं सो अपने परिवार और रिश्तेदारों को उन्होंने महत्वपूर्ण पद और जिम्मेदारियां दे दी जिससे नाराज कर्मवीर और कई साथियों ने इनका साथ छोड़ दिया सबसे ज्यादा समस्या तो शंकर देव की प्रतिष्ठा के दांव पर लगने से हुई और उनकी २००७ में रहस्यमयी तरीके से हुई गुमशुदगी भी अब CBI के लिए एक हथियार बन गयी है जो अब तक ठन्डे बसते में पड़ी थी ..CBI भी इस हाई प्रोफाइल बन चुके मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती लेकिन शुरुआत तो बालकृष्ण से हो ही गई है जाँच शुरू हुई देहरादून से लेकिन सबूत इस जाँच के बनारस तक ले गए और फिर परते खुलने में देर नहीं लगी , सम्पूर्णानन्द विश्व विद्यालय ने तो पल्ला झाड ही लिया उलटे नाम ख़राब करने के चक्कर में आचार्य पर FIR तक की धमकी दे डाली मीडिया को खुल कर उन रोल नंबर का डिटेल भी दे दिया जिनके जरिये ये नेपाली आचार्य जी लोगो से पैर छुआ कर आशीर्वाद दिया करते थे ..हरिद्वार नगर पालिका से उनके जन्म सम्बन्धी दस्तावेज पहले ही गायब हो चुके हैं सीबीआई के हर रोज कसते शिकंजे से बाबा के चेहरे का रंग बदलता चला जा रहा है .. सोचनेवाली बात ये है की CBI को जाँच में सहयोग नहीं कर रहे बालकृष्ण शायद काले कोट के बहकावे में हैं की उनको कुछ नहीं होगा और वो पतंजलि योगपीठ सहित तमाम संस्थानों और पतंजलि आयुर्वेद विश्व विद्यालय के कुलपति और सर्वे सर्वा बने रह पाएंगे .. सवाल आज काले धन से जयादा चर्चा का विषय है..

दुश्मन हो ... तो ज़रा धीरे चलो वरना !!!!!!

4 जून शायद कम लोगो को याद रहे लेकिन कुछ तो चाह कर भी नहीं भूल पाएंगे, जो भारत की राजधान्मी डेल्ही में रामलीला मैदान में एक साधू के बहकावे में आ टपके थे , किसी के हाथ टूटे किसी के पैर कोई छुप गया तो कोई भाग गया .. सत्तामठो को ब्लैक मेल करने की चाहत और राजनीती के पिछले गलियारे से इंट्री कर किंग मेकर बनने की ख्वाइश इस कदर ले डूबेगी इसका अंदाज़ा गेरुआ चोला धारक को बिलकुल नहीं था ..रही बात पूरे मामले में मीडिया की भूमिका की तो भ्रष्टाचार की गंगोत्री से फूटे प्रवाह में पत्रकारिता के मानदंड या तो बह गए या किनारे लग गए जो कुछ एक बचे हैं वो इतने हताश निराश और टूट चुके हैं की उनकी कलम अंगार उगलने के काबिल ही नहीं बची, हिम्मत दीखाने वाले पर या तो दनदनाती गोलिया चलती है या उन्हें इतना प्रताड़ित कर दिया जाता है की सच लिखने की परिभाषा तक भूल जाता है सच को लिखने के अक्षम्य अपराध में मुंबई के एक पत्रकार की हत्या और लखनऊ के दो संवाददाताओं पर हमला जल्द ही हुआ है ... कालाधन हमारे देश के लोगों के खून पसीने की कमाई है जिसे वापस लाने के लिए अकेले रामदेव नहीं देश की मीडिया और सभी पार्टियों के लोगो को एक माहौल बनाना चाहिए .. जो विदेश में काला धन जमा कर सकते हैं वो अपने भारत के अन्दर अपने धन के जरिये अस्थिरता पैदा कर सकते है ये बाबा को सोच कर ही ताल ठोकनी चाहिए थी.. ज्यादा चालाकी के चक्कर में अकेले पड चुके बाबा का साथ तो अन्ना हजारे ने भी दिल से नहीं दिया ,कालेधन के खातेदार बाबा की राजनैतिक नौसिखियेपन का फायदा उठाते हुए कुछ सफेदपोशो के जरिये इन्हें सबक सिखाने के लिए मैदान में कूड़े लेकिन परदे के पीछे से..लेकिन बाबा को जब तक समझ में आता की उन्होंने सांप के बिल में हाथ ड़ाल दिया है तब तक उस सांप ने उन्हें डस भी लिया और जहर उनके सबसे करीबी तक पहुच गया .. केंद्र की कठपुतली CBI की पीठ तो वाकई ठोकने लायक है क्यू की इसको चालाने के लिए ऊँगली का भी इस्तेमाल नहीं करना पड़ता शायद इन्हें भर्ती के दौरान ही सत्ता के इशारे समझने की ट्रेनिंग भी दी जाती है लेकिन सच तो ये है की दाग इधर भी हैं जो योग से हासिल प्रतिष्ठा में अब तक छुपे थे ,पतंजलि योगपीठ के प्रमुख रामदेव और बालकृष्ण का विवादों से पुराना नाता है बाबा की दवाओं कंपनियों और बालकृष्ण की नागरिकता , पासपोर्ट पर सवाल पहले भी उठ चुके हैं पर 4 जून के पहले इनकी जाँच करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई और ये मामले सिर्फ फाइलों में कैद होकर धुल चाटते रह गए ..
हरिद्वार के कनखल स्थित त्रिपुरा योग आश्रम से रामदेव बालकृष्ण ने योग सिखाने की शुरुआत की धीरे धीरे ये तिकड़ी हरिद्वार के दिव्या योग मंदिर के अध्यक्ष शंकरदेव की शरण में पहुचे जहाँ इस कला का जमकर विस्तार किया सच तो ये है की रामदेव की डीलिंग पावर और बालकृष्ण की चतुराई ने इन्हें कम समय में ही असमान की बुलंदियों तक पंहुचा दिया चूंकि रामदेव और बालकृष्ण ये जान गए थे की वही इस ख्याति के मुख्या अधिकारी हैं सो अपने परिवार और रिश्तेदारों को उन्होंने महत्वपूर्ण पद और जिम्मेदारियां दे दी जिससे नाराज कर्मवीर और कई साथियों ने इनका साथ छोड़ दिया सबसे ज्यादा समस्या तो शंकर देव की प्रतिष्ठा के दांव पर लगने से हुई और उनकी २००७ में रहस्यमयी तरीके से हुई गुमशुदगी भी अब CBI के लिए एक हथियार बन गयी है जो अब तक ठन्डे बसते में पड़ी थी ..CBI भी इस हाई प्रोफाइल बन चुके मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती लेकिन शुरुआत तो बालकृष्ण से हो ही गई है जाँच शुरू हुई देहरादून से लेकिन सबूत इस जाँच के बनारस तक ले गए और फिर परते खुलने में देर नहीं लगी , सम्पूर्णानन्द विश्व विद्यालय ने तो पल्ला झाड ही लिया उलटे नाम ख़राब करने के चक्कर में आचार्य पर FIR तक की धमकी दे डाली मीडिया को खुल कर उन रोल नंबर का डिटेल भी दे दिया जिनके जरिये ये नेपाली आचार्य जी लोगो से पैर छुआ कर आशीर्वाद दिया करते थे ..हरिद्वार नगर पालिका से उनके जन्म सम्बन्धी दस्तावेज पहले ही गायब हो चुके हैं सीबीआई के हर रोज कसते शिकंजे से बाबा के चेहरे का रंग बदलता चला जा रहा है .. सोचनेवाली बात ये है की CBI को जाँच में सहयोग नहीं कर रहे बालकृष्ण शायद काले कोट के बहकावे में हैं की उनको कुछ नहीं होगा और वो पतंजलि योगपीठ सहित तमाम संस्थानों और पतंजलि आयुर्वेद विश्व विद्यालय के कुलपति और सर्वे सर्वा बने रह पाएंगे .. सवाल आज काले धन से जयादा चर्चा का विषय है..

Sunday, August 7, 2011

केंद्र की कटिया में फंसे बाबा , अब बारी अन्ना की

केंद्र सरकार इन दिनों रोज एक नई मुसीबत में घिर जाती है कभी आदर्श घोटाला, तो कभी CWG घोटाला, कभी 2G मुद्दा तो अभी काला धन मुद्दा, कुछ दिनों से विपक्ष की मानो लाटरी लग गई हो और कांग्रेस रोज सिर्फ बचाव के रास्ते ही तलासते नज़र आती है लेकिन विपक्ष हंगामा करे तब तक तो ठीक था लेकिन इनसे ऊब कर बाबा और समाजसेवी लड़ने के लिए मैदान में कूद जायेंगे ऐसी उम्मीद सत्ताधारी पार्टी को बिलकुल नहीं थी..अगर बात अन्ना हजारे की करे तो इनके हौसले वर्ष 2003 से बुलंद हैं जब तत्कालीन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता और राज्य मंत्री जैन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। हजारे के आरोप पर सत्तारूढ़ कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार ने जैन और दो अन्य मंत्रियों नवाब मलिक और पद्मसिंह पाटिल के खिलाफ जांच के आदेश दिए। जांच रिपोर्ट के बाद जैन और मलिक को मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद जैन ने अन्ना हजारे के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया
लगभग एक साथ शुरू हुए दो आन्दोलनों में एक की हवा तो पहले ही निकल चुकी है बेहद शातिर कांग्रेसियों ने बाबा के लिखे समझौता पत्र को सार्वजानिक कर उनकी अति महत्वाकांक्षा को जनमानस के सामने लाकर उनके आन्दोलन का सत्यानाश तो पहले ही कर दिया रही सही कसर आधी रात को पूरी कर दी जिसमे उहापोह की स्थिति में नारी वेश में भागते हुए बाबा को बाद में पूरी दुनिया ने देखा.. केंद्र के मदारी बने दिग्विजय के इशारे पर सम्पतियों से लेकर पासपोर्ट तक की जाँच शुरू हुई और बेचारे मासूम से दिखने वाले कथित आचार्य बालकृष्ण बलि का बकरा बन गए ..CBI के तीखे सवालों का कई घंटों तक सामना करने की परेशानी ने उनके चेहरे की हवाइयां उडा दी फिर अब इस जाल में फंसने के बाद दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है .. जितनी बार रामदेव प्रेस बुला कर अपने को पाक साबित करने की कोशिश करते हैं उतना ही मीडिया के सवालों के जाल में फंस कर भाग खड़े होते हैं . ऐसे में अपनी बनी बनायीं साख को चंद दिनों में ही मटिया मेट करने का पूरा श्रेय खुद उनको और इतने गंभीर मुद्दे के साथ जल्दबाजी करने को ही जाता है .. बिना टीम बनाये खुद को कप्तान माननेवाले के लिए चार लाइन हैं..
"भीड़ में जो खुद की नुमाई कर रहा है
मानो जग हसाई कर है
जरा सा जोश क्या दरिया में आया
समुन्दर की बुराई कर रहा है "
कौन सच्चा कौन झूठा फिल्म में उनका क्या होगा ये तो वही जाने बात करते हैं दुसरे गाँधी की मतलब अन्ना हजारे, अन्ना हजारे का नाम जेहन में आते ही एक बेहद इमानदार मराठी टोपी लगाया हुआ व्यक्तित्व सामने आता है मतलब सवा करोड़ की आबादी में सिर्फ एक इमानदार चेहरा , जो सिर्फ इमानदारी के लिए 16 अगस्त से अपनी जान देने पर अमादा है, सरकार ने रोकने की कोशिश की उनकी बाते भी मानी लेकिन शत प्रतिशत नहीं.. बाबा रामदेव को आधी रात को खदेड़ने के मामले में अपनी किरकिरी करा चुकी सरकार ने अन्ना की ख़ुदकुशी का पाप अपने सर नहीं लेना चाहती इसलिए उन्हें पहले ही अनुमति न देकर डेल्ही से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, लेकिन जिद्दी अन्ना अपने इरादों में डेट है ...जब से सिविल socity बनी है और उसमे
अन्ना हजारे, किरण बेदी अरविंद केजरीवाल प्रशांत भूषण जैसे लोग शामिल हुए हैं देश की जनता के सामने इनके असली चेहरे लाने की कवायद ( CD प्रकरण भूमि आवंटन ) इनके विरोधियों ने शुरू कर दी , इन्होने अपने बचाव में बहुत कुछ कहा लेकिन अब ये टीम इस बात पर अमादा है की सवा अरब भारतियों में अक्ल और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का माद्दा केवल इनके ही पास है ये किसी के गले नहीं उतर रहा है .. लोगो को समझ में नहीं आ रहा की खुद को भीम समझनेवाले अन्ना ने रामदेव का सहयोग लेने से इनकार कर दिया तो गांव गांव जाकर इसके लिए जनमत संग्रह क्यों कर रहे हैं ? जब कोई विरोधी पार्टी का सदस्य इनके मंच पर आकर इस मुहीम में अपना समर्थन देना चाहता है तो उसे ये स्वयम्भू लोग क्यों रोक देते हैं.. दिखावे के लिए ही सही वो आपका साथ देने तो आया ही है और इस बात की क्या गारंटी है की जिससे आप दस्तखत करवा रहे है वो सच में दिल से आपके साथ हो .. जब सरकार लोकपाल कानून बनाकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना चाहती है तो फिर मरने की जिद क्यों ? लोकतान्त्रिक देश में ये जरूरी है क्या की किसी को ब्लैक मेल कर अपनी मर्जी का कानून बनवा कर ही दम लिया जाय .. कही इनको मीडिया के कैमरों की चमक की लत तो नहीं लग गई ?
दरअसल इण्डिया अगेंस्ट करप्शन को चंदा देश के कुछ बड़े उद्योगपति दे रहे हैं और उन्होंने बाकायदा इसकी स्क्रिप्ट भी लिखी है सच तो ये है की 2G घोटाले के बाद इन उद्योगपतियों को लगने लगा की अब वक़्त आ गया है जब जनता को गुमराह कर एकदम से माहौल बदल दिया जाये, उनकी लिखी स्क्रिप्ट को कानून का रूप देने के लिए पीछे से उनका दमखम लगा है और मासूम अन्ना इस बात के लिए अड़े है की ये विश्व का सबसे अच्छा ड्राफ्ट है है यही कानून पास होना चाहिए जबकि देश की जनता जानती है की कानून बनाना संसद का काम है .. अगर अन्ना सच में चाहते हैं की उनका ड्राफ्ट ही final हो तो विपक्ष से मिलकर उन्हें इसमें संशोधन करवाना चाहिए न की जान देना चाहिए ..क्यों की संसद में कानून बनने पर विपक्ष की भूमिका भी होती है . खैर अन्ना अपनी बात मनवाने के लिए जनमत संग्रह कर रहे हैं जिसमे सोनिया गाँधी का संसदीय क्षेत्र रायबरेली और कपिल सिब्बल का संसदीय क्षेत्र चांदनी चौक है जहाँ उनका दावा है की उन्हें जन्लोकपाल के लिए 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगो ने समर्थन दिया लेकिन जब आप दुनिया को भ्रष्ट बताने पर तुले है तो आपके इस संग्रह की वैधानिकता पर प्रशनचिंह अपने आप लग जाता है.. ऐसे में अन्ना का हश्र भी बाबा जैसे न हो इसके लिए उन्हें स्वविवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और किसी की कठपुतली बन ने से बचना चाहिए ..

Monday, August 1, 2011

दिग्गजों की राजनितिक भंवर में फंसी रायबरेली

रायबरेली का नाम कांग्रेस शाशित प्रदेशों में भले ही एक मंदिर (सोनिया जी ) के रूप में लिया जाता हो लेकिन हकीकत तो ये है की यहाँ की जनता सिर्फ रायबरेली के होने का अभिशाप झेल रही है ..दो पाटों के बीच में फंसा रायबरेली देश का इकलौता ऐसा जिला होगा जिसमे केंद्र सरकार से भेजे जा रहे विकास के करोडो रुपैये डाकार्नेवाले अधिकारीयों की पीठ प्रदेश सरकार थपथपा रही है, केंद्र सरकार की योजनाओं में प्रदेश और प्रदेश सरकार की योजनाओं में केंद्र छेद कर अपने आकाओं से खुद को पुरस्कृत करवा रहे हैं , चूंकि इस जिले में बी एस पी का एक भी विधायक नहीं है इसलिए विकास का पहिया शायद एक दम ठप है , इस जिले की दुरदशा हम आपको चाह कर भी एक बार में नहीं बता सकते इसलिए शुरुआत करते हैं सबसे पहले यहाँ की जर्जर विद्युत् व्यवस्था पर .. जर्जर का ये मतलब कतई नहीं है की पोल या तार ख़राब है जी नहीं इन पर तो सरकार ने 3500 करोड़ रुपैया खर्च कर चमका दिया है लेकिन इस जिले के बल्ब नहीं चमके ..कारखानों का शोर बंद सा हो गया है, और नरेगा जैसी योजनाओं के बन्दर बाँट से परेशां यहाँ का आम आदमी महानगर की तरफ रुख कर रहा है जहाँ राज ठाकरे जैसे सत्ता के भूखे भेड़ियों से खुद को बचाते हुए परिवार की दाल रोटी के लिए वो खुद को खपाए दे रहा है.. सोनिया मतलब सोनिया गाँधी जब यहाँ से चुनाव लड़ने आई तो लोगो को एक उम्मीद की किरण दिखी लोगो को इंदिरा गाँधी की याद आई और उन्हें लगा की हम सांसद नहीं प्रधान मंत्री चुन रहे हैं , लोगो को सपने आने लगे की अब हम रबड़ की सडको पर चलेंगे , हर हाथ में काम होगा , हर बच्चा स्कूल जायेगा , लोगो की बीमारी का तुरंत इलाज़ होगा , अब कोई भूख से नहीं मरेगा , लेकिन सपने तो सपने होते हैं उनको ये किरण सिर्फ दूर से ही दिख रही थी पास आते आते बुझ गयी दुनिया की ताकत वर महिलाओं में शुमार यहाँ की सांसद ने खुद को सूबे की मुखिया के आगे असहाय साबित कर दिया और इंदिरा जी के समय कुछ ज्यादा ही सम्मान पाए यहाँ के लोग एक बार फिर ठगे से रह गए .. अगर मौसम का मिजाज और हवा का रुख भांप कर यहाँ के लोग बीएसपी के साथ चले जाते तो शायद कुछ तो भला हो ही जाता.. आम चुनाव में सोनिया जैसे ही विजयी होकर डेल्ही पहुची उनके सामने समस्याओं का अम्बार लग गया जिसमे सबसे ज्यादा शिकायते किसानो के सूखे खेत और व्यापारियों के बंद हो रहे उद्योग थे कारण था बिजली की कम आपूर्ति .. इन समस्याओं का ओक्सिजन सिर्फ और सिर्फ सुचारू विद्युत् व्यवस्था थी .. प्रदेश सरकार की पहले मान मनौवल की गई कई तरह से डराया धमकाया गया लेकिन बात नहीं बनी तो केंद्र में बैठे सत्ता सीनों को अपनी ताकत NTPC याद आई जिसकी एक इकाई रायबरेली के उन्चाहर में भी स्थापित है लेकिन उससे पैदा होनेवाली बिजली का वितरण सुनिश्चित था लिहाजा उसमे एक अलग से unit 3000 करोड़ खर्च कर लगायी गई और उससे पैदा होनेवाली 210 MW बिजली सीधे रायबरेली को दी जाने लगी , इसके लिए 75 करोड़ में एक सब स्टेशन भी बना दिया गया, 24 घंटे की सप्लाई में बाधा न आये इसलिए 268.52 करोड़ की लागत से लाईने सही कर दी गयी किन्तु बिद्युत वितरण व्यवस्था राज्य सरकार के जिम्मे होती है सो उन्होंने इस सब स्टेशन की बिजली लखनऊ के पार्को को चमकाने के लिए आगे बाधा दी और नतीजा ढाक के तीन पात .. बिजली के लिए कांग्रेस सहित तमाम विरोधी दलों ने प्रदर्शन किये आरोप प्रत्यारोप का दौर चला , आमलोग एक जुट तो हुए लेकिन उनकी अगुआई करनेवाले बिक गए अब यहाँ के लोग अगली सरकार में रायबरेली की भागीदारी चाहते हैं चाहे वो किसी दल की हो , लेकिन लोग कशमकश में हैं की कांग्रेस के गढ़ से दुसरे को जीता कर विधान सभा पंहुचा दें या फिर कांग्रेस के लिए मेहनत कर इसको और मजबूत कर दे पर कहीं घोटालो में घिरी अगली सरकार केंद्र में न बन पाई तो क्या होगा रायबरेली का ??

दिग्गजों की राजनितिक भंवर में फंसी रायबरेली

रायबरेली का नाम कांग्रेस शाशित प्रदेशों में भले ही एक मंदिर (सोनिया जी ) के रूप में लिया जाता हो लेकिन हकीकत तो ये है की यहाँ की जनता सिर्फ रायबरेली के होने का अभिशाप झेल रही है ..दो पाटों के बीच में फंसा रायबरेली देश का इकलौता ऐसा जिला होगा जिसमे केंद्र सरकार से भेजे जा रहे विकास के करोडो रुपैये डाकार्नेवाले अधिकारीयों की पीठ प्रदेश सरकार थपथपा रही है, केंद्र सरकार की योजनाओं में प्रदेश और प्रदेश सरकार की योजनाओं में केंद्र छेद कर अपने आकाओं से खुद को पुरस्कृत करवा रहे हैं , चूंकि इस जिले में बी एस पी का एक भी विधायक नहीं है इसलिए विकास का पहिया शायद एक दम ठप है , इस जिले की दुरदशा हम आपको चाह कर भी एक बार में नहीं बता सकते इसलिए शुरुआत करते हैं सबसे पहले यहाँ की जर्जर विद्युत् व्यवस्था पर .. जर्जर का ये मतलब कतई नहीं है की पोल या तार ख़राब है जी नहीं इन पर तो सरकार ने 3500 करोड़ रुपैया खर्च कर चमका दिया है लेकिन इस जिले के बल्ब नहीं चमके ..कारखानों का शोर बंद सा हो गया है, और नरेगा जैसी योजनाओं के बन्दर बाँट से परेशां यहाँ का आम आदमी महानगर की तरफ रुख कर रहा है जहाँ राज ठाकरे जैसे सत्ता के भूखे भेड़ियों से खुद को बचाते हुए परिवार की दाल रोटी के लिए वो खुद को खपाए दे रहा है.. सोनिया मतलब सोनिया गाँधी जब यहाँ से चुनाव लड़ने आई तो लोगो को एक उम्मीद की किरण दिखी लोगो को इंदिरा गाँधी की याद आई और उन्हें लगा की हम सांसद नहीं प्रधान मंत्री चुन रहे हैं , लोगो को सपने आने लगे की अब हम रबड़ की सडको पर चलेंगे , हर हाथ में काम होगा , हर बच्चा स्कूल जायेगा , लोगो की बीमारी का तुरंत इलाज़ होगा , अब कोई भूख से नहीं मरेगा , लेकिन सपने तो सपने होते हैं उनको ये किरण सिर्फ दूर से ही दिख रही थी पास आते आते बुझ गयी दुनिया की ताकत वर महिलाओं में शुमार यहाँ की सांसद ने खुद को सूबे की मुखिया के आगे असहाय साबित कर दिया और इंदिरा जी के समय कुछ ज्यादा ही सम्मान पाए यहाँ के लोग एक बार फिर ठगे से रह गए .. अगर मौसम का मिजाज और हवा का रुख भांप कर यहाँ के लोग बीएसपी के साथ चले जाते तो शायद कुछ तो भला हो ही जाता.. आम चुनाव में सोनिया जैसे ही विजयी होकर डेल्ही पहुची उनके सामने समस्याओं का अम्बार लग गया जिसमे सबसे ज्यादा शिकायते किसानो के सूखे खेत और व्यापारियों के बंद हो रहे उद्योग थे कारण था बिजली की कम आपूर्ति .. इन समस्याओं का ओक्सिजन सिर्फ और सिर्फ सुचारू विद्युत् व्यवस्था थी .. प्रदेश सरकार की पहले मान मनौवल की गई कई तरह से डराया धमकाया गया लेकिन बात नहीं बनी तो केंद्र में बैठे सत्ता सीनों को अपनी ताकत NTPC याद आई जिसकी एक इकाई रायबरेली के उन्चाहर में भी स्थापित है लेकिन उससे पैदा होनेवाली बिजली का वितरण सुनिश्चित था लिहाजा उसमे एक अलग से unit 3000 करोड़ खर्च कर लगायी गई और उससे पैदा होनेवाली 210 MW बिजली सीधे रायबरेली को दी जाने लगी , इसके लिए 75 करोड़ में एक सब स्टेशन भी बना दिया गया, 24 घंटे की सप्लाई में बाधा न आये इसलिए 268.52 करोड़ की लागत से लाईने सही कर दी गयी किन्तु बिद्युत वितरण व्यवस्था राज्य सरकार के जिम्मे होती है सो उन्होंने इस सब स्टेशन की बिजली लखनऊ के पार्को को चमकाने के लिए आगे बाधा दी और नतीजा ढाक के तीन पात .. बिजली के लिए कांग्रेस सहित तमाम विरोधी दलों ने प्रदर्शन किये आरोप प्रत्यारोप का दौर चला , आमलोग एक जुट तो हुए लेकिन उनकी अगुआई करनेवाले बिक गए अब यहाँ के लोग अगली सरकार में रायबरेली की भागीदारी चाहते हैं चाहे वो किसी दल की हो , लेकिन लोग कशमकश में हैं की कांग्रेस के गढ़ से दुसरे को जीता कर विधान सभा पंहुचा दें या फिर कांग्रेस के लिए मेहनत कर इसको और मजबूत कर दे पर कहीं घोटालो में घिरी अगली सरकार केंद्र में न बन पाई तो क्या होगा रायबरेली का ??