Friday, November 25, 2011

मायावती का 'फरार' मंत्री


वे सिर्फ राज्य में ताकतवर कैबिनेट मंत्री के पद पर आसीन हैं बल्कि उत्तर प्रदेश में मायावती पार्टी तंत्र को संचालित करने के लिए भी उनसे विश्वसनीय किसी व्यक्ति को नहीं मानती. नित्य प्रति वे सत्ता के गलियारों में देखे जाते हैं, पुलिस और प्रशासन उन्हें सलाम बजाकर उनका हुक्म लेती है. लेकिन अदालत का रिकार्ड यह कह रहा है कि पुलिस और प्रशासन जिस व्यक्ति को सुबह शाम सलाम बजा रही है वह एक फरार मुजरिम है जिसे अभी अदालत में हाजिर होना है. पिछले चौबीस सालों से अदालत का एक फरमान इस कैबिनेट मंत्री का पीछा कर रहा है और प्रदेश की पुलिस को स्वामी प्रसाद मौर्य ढूंढे नहीं मिल रहे हैं.

मायावती के कथित कानून के राज का इससे बड़ा सच और क्या होगा कि उनकी ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं माया के अति विश्वसनीय कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या रायबरेली की एक अदालत से पिछले चौबीस सालों से फरार हैं और मायावती सरकार की जांबाज पुलिस प्रशासन प्रदेश बसपा अध्यक्ष एवं कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को कौन कहे उनकी परछाई तक को नहीं ढूँढ़ पा रहा है। बावजूद इसके सूबे की मुखिया मायावती का मायावी दावा जारी है - ‘कानून के जरिए कानून का राज - सूबे में कानून व्यवस्था हर हाल में ......।

जी हाँ - यही कड़वी सच्चाई है - उत्तर प्रदेश की सरजमी पर मायावती के कानून के राज की ! साक्ष्यों के अनुसार - आज से ठीक चौबीस वर्ष पूर्व 30 जून 1987 को रायबरेली जनपद के थाना - डालमऊ में अग्निशमन केन्द्र के प्रधान आरक्षी रामसूरत उपाध्याय ने अपराध संख्या 110/1987 धारा 147, 148, 149, 307, 323, 332, 353, 336 एवं 427 के तहत सरकार बनाम स्वामी प्रसाद मौर्य व अन्य के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया गया था।

1987 में जनपद रायबरेली के थाना-डालमऊ में दर्ज उपरोक्त आपराधिक मुकदमा आज चौबीस वर्ष बाद भी जूडीशियज मजिस्ट्रेट-प्रथम रायबरेली के न्यायालय में वाद संख्या 831/2006 विचाराधीन है। साक्ष्यों के अनुसार जूडीशियल मजिस्ट्रेट-प्रथम के न्यायालय से जारी गैर जमानती वारंट पर जिला न्यायालय से जारी गैर जमानती वारंट पर जिला न्यायालय से निराश होकर स्वामी प्रसाद मौर्य ने अंततः उच्च न्यायालय में गैर जमानती वारंट के क्रियान्वयन पर रोक लगाने हेतु याचिका दायर कर दी। 26 फरवरी 2009 को उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर सुनवाई के उपरान्त याचिका को न सिर्फ खारिज ही कर दिया बल्कि याची/अभियुक्त स्वामी प्रसाद मौर्य को अपने आदेश में निर्देशित भी किया है कि - याची/अभियुक्त स्वामी प्रसाद मौर्य 03 मार्च 2009 को अधीनस्थ न्यायालय में उपस्थित हों। बावजूद इसके उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को जारी हुए करीब सत्ताइस महीने गुजर गए लेकिन मायावती मंत्रीमण्डल का यह गैर जमानती वारंट धारी कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने आज तक रायबरेली के सम्बन्धित कोर्ट में उपस्थित होने की जहमत नहीं उठाई है।

न्यायालय से फरार गैर जमानती वारंटधारी अभियुक्त न सिर्फ सत्ताधारी बहुजन समाज पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष ही है बल्कि, सूबे की मुखिया मायावती के नाक का बाल, अतिविश्वसनीय कैबिनेट मंत्री भी है, बावजूद इसके उस उत्तर प्रदेश की कथित जाबांज पुलिस को जिसके विषय में यह सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश पुलिस दस साल पहले मर चुके मुर्दे से भी गवाही दिलाने की कूबत रखती हैं। इस प्रदेश की पुलिस यह भी सिद्ध कर सकने में सक्षम है कि - मृतक व्यक्ति ने बल्ब के होल्डर में फाँसी का फन्दा लगाकर आत्महत्या कर ली है। इस सूबे की किसी छोटी-मोटी धारा में भी उसका जीना मुहाल कर सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता मनवीर सिंह तेवतिया को भी खूँखार अपराधी करार देते हुए उस पर 50,000/- रुपये का इनाम घोषित कर सकती है, लेकिन अपनी उपरोक्त जाबांजी के बावजूद भी उसे न्यायालय से फरार गैर जमानती वारंट धारी लालबत्ती पर सवार अभियुक्त स्वामी प्रसाद मौर्य का कहीं अता-पता नहीं लग पा रहा है।

कहना गलत न होगा कि, लखनऊ से लेकर रायबरेली तक की पुलिस की इस चाटुकारिता से खिन्न होकर ही रायबरेली समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष ओ0 पी0 यादव ने पिछले दिनों उपरोक्त प्रकरण पर लिखित रूप से प्रदेश पुलिस के मुखिया कर्मवीर सिंह, मुख्य सचिव गृह एवं प्रधानमंत्री तक को अवगत कराते हुए एलान किया था कि अब रायबरेली आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य यदि पेशी के दिन न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए तो स्थानीय जनता ही अभियुक्त स्वामी प्रसाद मौर्य को जबरिया पकड़कर न्यायालय को सौंप देगी। बताया जाता है कि अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में अभियुक्त मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य आए तो जरूर लेकिन सपा नेता ओ0 पी0 यादव के ऐलान से रायबरेली पुलिस कुछ इस भयभीत थी कि - जब तक स्वामी प्रसाद मौर्य जिले की सीमा में मौजूद रहे तब तक उनके इर्द-गिर्द पुलिस छावनी ही बनी रही। अंततः स्वामी प्रसाद मौर्य अपने सरकारी कार्यक्रमों को निपटा कर एक बार फिर रायबरेली अपने सरकारी कार्यक्रमों को निपटा कर एक बार फिर रायबरेली न्यायपालिका को अंगूठा दिखाते हुए लालबत्ती से दनदनाते हुए निकल भागने में कामयाब हो गए। अब रायबरेली पुलिस एक बार फिर अभियुक्त स्वामी प्रसाद मौर्य को ढूँढ़ निकालनें में पूरी जी-जान से जुट गई है।

Thursday, November 24, 2011

दलित की मौत पर सियासत


रायबरेली में पुलिस की पिटाई से दलित रामचंदर की मौत क्या हुई मीडिया से लेकर गांव वालों ने उसका अपने अपने तरीके से पोस्ट मार्टम शुरू कर दिया , और मीडिया के पोस्ट मार्टम करते ही राजनीतिज्ञों के चेहरों की चमक बढ़ गयी मानों उन्हें इलेक्शन जीतने का पूरा मौका गरीब की मौत ही दे गया ,, और शुरू हो गयी लाश पर राजनीती ..
जरा सोचकर देखिये क्या ये वही उत्तर प्रदेश की पुलिस है जहाँ प्रशासन ने पुलिस बल में करीब साढ़े पाँच हजार सब इन्सपेक्टरों (एसआई) की खाली जगह को भरने के लिए महकमें के हेड कांस्टेबिलों को अपने सिपाहियों की चुस्ती फुर्ती आंकने के लिए फुर्ती टेस्ट करने का आदेश दिया था लेकिन पुलिस के इस फरमान से उत्तर प्रदेश के सुरक्षा दस्ते की जो हकीकत निकलकर सामने आई है वह न केवल पुलिस महकमे को बल्कि पूरे प्रदेश को शर्मसार करने के लिए काफी है. वरिष्ठ अधिकारियों की इस नादिरशाही फरमान से एक महीने के भीतर ही सौ से ज्यादा दीवान जी (हेड कांस्टेबल) गंभीर रूप से बीमार पड़ गये और अस्पताल के बिस्तर पर पहुच चुके हैं। तो वहीं करीब 6 से ज्यादा दीवान अ-समय ही काल के गाल में समा चुके हैं। पर समय समय पर इनका चेहरा भी बदलता रहता है, उत्तर प्रदेश में विशेषकर मायावती के मायावी शासनकाल में प्रदेश के कथित तेज-तर्रार खाकीवर्दीधारी पुलिसिया रणबांकुरों के कृत्यों-कु-कृत्यों का तो रायबरेली की घटना नमूना मात्र है, अब जरा रामचन्द्र का कसूर सुन लीजिये उसके बेटे दिलीप ने बबिता नाम की लड़की से शादी कर ली थी जिसमे विरोध और पारिवारिक उलझनों के चलते अलग अलग रहने की नौबत आ गयी थी लिहाजा आज की तारिख में दोनों अलग अलग रहते थे और बबिता की और से जीविकोपार्जन का मुकदमा दर्ज करवा दिया गया था.. चुकी दोनों डेल्ही में रहते थे और मुकदमा भी वही पंजीकृत था लिहाजा वारंटी दिलीप की गिरफ्तारी के बाद उसको पेशी पर खाखी के साये में डेल्ही ले जाया जाता था .. अपनी लापरवाही के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश की पुलिस के चंगुल से हरदोई के रेलवे स्टेशन से दिलीप 21 अक्टूबर को फरार हो गया , फिर क्या था शुरू हो गया खाकी वर्दीधारी इन रणबांकुरों का कारनामा, वो खाकी जिसे किसी भी सभ्रान्त व्यक्ति के घर में अपराधियों की तरह आधीरात में घुसनें में न तो शर्म आती है और न ही इन्हें निमय-कानूनों का डर ही लगता है। क्योंकि इनके सत्ताधारी माई-बाप इनकी हिफाजत के लिए ऊपर जो बैठे हैं दिलीप के पैतृक आवास पर रायबरेली पुलिस प्रशासन नें नंगनाच का जो शर्मनाक प्रदर्शन किया है वह किसी भी सभ्यसमाज को शर्मशार कर देनें के लिए पर्याप्त हैं। आधीरात में दर्जन भर से ज्यादा पुलिस कर्मी सरकारी गाड़ी से सायरन बजाते हुए महिला SHO रंजना सचान के नेतृत्व में रामचंदर के आवास पर पहुँची तथा घर का दरवाजा पीटनें लगी। उस समय घर के अंदर एक पचपन वर्षीय लाचार बुजुर्ग एवं उसकी पत्नी सावित्री ही घर में थी। दिलीप के बारे मौजूद न होनें की बात बताते हुए दरवाजा खोलने से इंकार दिया गया तो इन पुलिसिया रणबांकुरो नें अपनें जौहर का शर्मनाक प्रदर्शन करते हुए घर के पीछे से छत के रस्ते न सिर्फ अंदर ही घुस गए बल्कि महिला के साथ घण्टो तक अभद्रता करते हुए घर का सारा सामान विखरा कर कथित रूप से घर में छुपे हुए दिलीप की तलाश करते रहे। घर में दो के अलावा तीसरा कोई था ही नहीं तो फिर मिलता कौन? अन्त में अपनी इस कथित शर्मनाक बहादुरी का परचम लहराते हुए खाकी वर्दी के रणबांकुर वहाँ से रामचंदर को साथ लेकर प्रस्थान कर गए। रामचंद्र की थाने में जमकर आवभगत हुई करंट लगाने से लेकर गुप्तांग तक में चोट करने से नहीं चुकी महिला SHO ने बेशर्मी और मानवता को बहुत पीछे छोड़ दिया , दरोगा यदि सत्ता में ऊंची पहुच का हो तो कान बंद होना स्वाभाविक है वो चीखता रहा और ये पीटती रही नतीजा जुल्म न सह पाने के कारण रामचंद्र मौत के मुह में समां गया.. रोजन अपने इर्द गिर्द इस तरह की पुलिसिंग से परेशान रामचंद्र के गांव वालों ने लाश को जिलाधिकारी के आफिस के सामने रख़ कर खूब हंगामा काटा नतीजा ये हुआ की SHO रंजना सचान को लाइन हाजिर कर के उन पर ( 304 IPC ) गैर इरादतन हत्या के मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया गया .. और जाँच की बात की गयी किन्तु पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट में जब चोट की पुष्टि नहीं हुई तो लोगो को इस भ्रष्ट सिस्टम पर खूब गुस्सा आया और बात हरिजन योग के अध्यक्ष पी. एल. पुनिया के सामने पहुची प्रदेश की BSP सरकार से नाराज कांग्रेसी सांसद और अध्यक्ष पुनिया तत्काल लावलश्कर के साथ मौके पर पहुचे और दुबारा पोस्ट परतम के लिए कह कर चले गए , लेकिन 80 प्रतिशत से ज्यादा सड़ चुकी रामचंदर की लाश में दुबारा भी डाक्टरों की टीम कुछ नहीं दूंद पाई और मामला ज्यों का त्यों बना रह गया .. हा इस बीच रायबरेली की जिलाधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए छुट्टी के दिन दफ्तर खुलवाकर पीड़ित को 1,50 ,000 की चेक तहसीलदार के हाथ से भिजवाकर मरहम लगाने की कोशिश जरूर की.. वही राजनीतिक पार्टियों ने रामचंदर को न्याय के नाम पर साथ में फोटो खिचवा कर अपनी रोटिया सेकना शुरू कर दी हैं.. दरअसल मायावती शासनकाल में पुलिस हिरासत में हुई मौतों को ‘आत्महत्या’ में बदलनें में शायद प्रशासन को महारत हासिल है। उत्तर प्रदेश की पुलिस का ही यह कमाल है कि - जब ये पायजामें के नाडे़ और लॉकअप में लगे बल्ब के होल्डर से फाँसी लगवानें के साथ-साथ दस साल पहले मर चुके व्यक्ति से फर्जी हरिजन ऐक्ट के मुकदमें में गवाही दिलवा सकते हैं तो फिर लाकआप में पिटाई करते समय इन्हें किसका भय रहा होगा । उत्तर प्रदेश पुलिस न सिर्फ रस्सी को साँप साबित कर देने में माहिर है बल्कि वह जायज काम को नाजायज एवं नाजायज काम को जायज साबित करनें में पूरी तरह सिद्धहस्त है। ऐसे में ये हाल तब है जब प्रदेश की कमान एक दलित मुख्यमंत्री के हाथ में है , रामचंदर के परिवार को न्याय मिल पायेगा इसकी कल्पना करना भी मुमकिन नहीं है और अगर समाज सेवियों , मीडिया कर्मियों, खद्दर धारियों के निरंतर प्रयास से इस परिवार को न्याय मिल भी गया तो क्या इस ह्रदय विदारक घटना से इंसानियत पर जो दाग लगे हैं वो कभी धुल पाएंगे ??

बच्चन की चौथी पीढ़ी तक के उतार चढाव

गंगा यमुना का संगम होने के कारण यह एक तीर्थ क्षेत्र है तो अपने विश्वविद्यालय और हाई कोर्ट के कारण भी लाखों लोगों का जुड़ाव उस नगर से रहा है। फिराक, निराला, पंत, महादेवी, उपेन्द्र नाथ अश्क से लेकर बाद की साहित्यिक दुनिया को संचालित करने वाले, धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, कन्हैयालाल नन्दन, रवीन्द्र कालिया जैसे सम्पादकों का क्रीड़ांगन भी इलाहाबाद ही रहा है। इसी क्षेत्र से निकले हरिवंशराय बच्चन ने उमर खैय्याम की रुबाइयों की तरह मधुशाला रच कर न केवल नया इतिहास रच डाला अपितु हिन्दी कवि सम्मेलनों की नींव भी डाली। इससे पूर्व हिन्दी में केवल गोष्ठियां ही हुआ करती थीं जबकि उर्दू वाले मुशायरे करते थे जो व्यापक श्रोता समुदाय को आकर्षित करते थे। बच्चन की मधुशाला ने अपनी विषय वस्तु से ही एक नया इतिहास रच डाला और खुले आम एक वर्जित वस्तु को विषय बनाकर अपनी बात कही जिसे हिन्दीभाषी समाज में एक सामाजिक विद्रोह भी कह सकते हैं। उर्दू ने यह काम बहुत पहले ही कर दिया था और वे इससे कठमुल्लों को खिजाते रहते थे। उसी तर्ज पर बच्चन की मधुशाला लोकप्रिय हुयी और उसके सहारे कवि सम्मेलनों को भी लोकप्रियता मिलने लगी। उस दौरान लन्दन में पढे अंग्रेजी के प्रोफेसर डा. बच्चन, तेजी जी से प्रेम विवाह करके भी चर्चित हो चुके थे। यह वह दौर था जब प्रेम विवाह को समाज में एक बड़ी घटना की तरह लिया जाता था।

तेजी बच्चन इन्दिरा गान्धी की मित्र थीं और इसी तरह बच्चन जी के पुत्र अमिताभ को भी इन्दिरा गान्धी के पुत्र राजीव गान्धी से मित्रता का अवसर मिला। इन्हीं सम्पर्कों के अतिरिक्त बल के कारण डा. बच्चन राज्य सभा के लिए बिना किसी निजी प्रयास के नामित हुये थे और इस तरह वे देश के सबसे महत्वपूर्ण परिवार के सबसे निकट थे। जब राजीव गान्धी की शादी हुयी थी तब लड़की वालों अर्थात सोनिया के परिवार का निवास बच्चन जी का घर बना था व तेजी बच्चन ने दुल्हिन सोनिया गान्धी के हाथों पर मेंहदी लगाने की रस्म निभायी थी। कुछ समय कलकत्ते में नौकरी करने के बाद अमिताभ लोकप्रियता से दौलत कमाने के लिए मह्शूर फिल्मी दुनिया में आ गये तथा प्रारम्भिक फिल्में व्यावसायिक रूप से सफल न होने के बाद भी जमे रहे, क्योंकि उनके पास लोकप्रियता की पृष्ठभूमि थी। इसी के भरोसे वे न केवल अभिनय कला में निरंतर निखार लाने के प्रयोग कर सके जिसमें वे सफल भी हुए। इन्दिरा गान्धी और राजीव गान्धी के प्रधानमंत्रित्व के दौरान उनके मार्ग की बाधाएं स्वयं ही हट जाती थीं भले ही उन्होंने कभी कोई आग्रह न किया हो। पुराने कलाकारों के परिदृष्य से बाहर होने और समकालीनों के पिछड़ने के कारण वे उद्योग के बेताज बादशाह बन गये। रंगीन टीवी और नई आर्थिक नीति से बाजारवाद आने के बाद उनकी लोकप्रियता के लिए अनेक अवसर खुल गये और वे अपनी लोकप्रियता के सहारे तेल से लेकर ट्रैक्टर तक सब कुछ बिकवाने लगे। यहाँ तक कि एक समय राजीव गान्धी ने भी अपने राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने में उनकी लोकप्रियता को भुनाया था। जब राजीव गान्धी परिवार से उनका मनमुटाव हुआ तो उन्हें अमर सिंह मिल गये जिन्होंने एक दूसरे राजनीतिक पक्ष से उनका सौदा करा दिया। इससे कभी कांग्रेस के सांसद रहे परिवार में न केवल उनकी अभिनेत्री पत्नी जया भादुड़ी को समाजवादी सांसद बनने का मौका मिला अपितु उन पर इनकम टैक्स का नोटिस निकालने पर इनकम टैक्स दफ्तर में तोड़फोड़ करने वाली टोली भी मिल गयी। बाद में उन्होंने 2002 में मुसलमानों के नरसंहार के लिए कुख्यात नरेन्द्र मोदी की भाजपा सरकार का ब्रांड एम्बेसडर बनना भी स्वीकार कर लिया।

इसी लोकप्रियता के बीच उनके पुत्र को अपेक्षाकृत कम योग्यता के बाद भी फिल्मों में स्थान मिला जिसके लिए बच्चन परिवार ने अपने समय की एक प्रतिभाशालिनी सुन्दर नायिका और विज्ञापनों की मँहगी माडल का चुनाव किया जो न केवल उनके पुत्र से अधिक लोकप्रय थी अपितु उम्र में भी दो साल बड़ी थी। इस प्रकार यह परिवार देश में सबसे अधिक विज्ञापन फिल्में करके धन अर्जित करने वाला परिवार भी बन गया। हमारे देश में फिल्में खूब देखी जाती हैं और यह एक बड़ा उद्योग है। फिल्मी पत्रकारिता के स्वतंत्र अस्तित्व के साथ साथ सभी अखबारों में फिल्मों के लिए स्थान निश्चित रहता है और इस जगह को खबरों की भी जरूरत रहती है। जब खबरें नहीं मिलतीं तो खबरें पैदा की जाती हैं। मीडिया के बाहुल्य ने उनके अन्दर प्रतियोगिता पैदा की है और इस प्रतियोगिता ने खबरों को और और चटखारेदार बना कर पेश करने की अनैतिकता को जन्म दिया है। कई बार तो कम चर्चित फिल्मी अभिनेता भी चर्चा में बने रहने के लिए ऐसी खबरों को हवा देते हैं। अभिषेक की शादी से लेकर उसके घर में शिशु जन्म तक इन मीडियावालों ने कई बार अपनी कल्पनाशीलता से खबरें गढी भी हैं। व्यावसायिक हित में खबरों का गढा जाना एक बड़ी सामाजिक बीमारी का ही हिस्सा है जिसमें नई आर्थिक नीति से लेकर लोकप्रियतावाद तक जिम्मेवार है। इस बार शिशु जन्म के समय न केवल अमिताभ को ही मीडिया से अपने ऊपर लगाम लगाने को कहना पड़ा अपितु मीडिया की संस्थाओं ने भी आलोचनाओं से घबरा कर आत्म नियंत्रण की अपील की। 


लड़कियों की घटती संख्या को देखते हुए देश में उनके अनुपात को बनाये रखने के लिए विश्व स्वास्थ संगठन के सहयोग से अनेक कार्यक्रम संचालित हो रहे हैं जिनके द्वारा बेटी बचाओ की इतनी सारी अपीलें की जा रही हैं कि बेटी के जन्म को प्रीतिकर दर्शाना पड़ता है। बच्चन परिवार ने भी यही किया किंतु दूसरे संकेत कुछ अलग ही कहानी कहते हैं। उल्लेखनीय है कि अमिताभ-जया ने अपनी बेटी को फिल्मों से दूर रखा है और उसे फिल्मी जगत से अलग एक उच्च औद्योगिक घराने में पारम्परिक ढंग से व्याहा है। पिछले दिनों हमारे समाज में वंशवृक्ष की जगह वंश को अधिक महत्व दिया जाने लगा जबकि वंशवृक्ष तो लड़कियों और उनकी संतानों से भी बढता है। अमिताभ की लड़की के जब बच्चे हुए तब न तो उनके द्वारा अपने पूज्य पिता को याद किये जाने की खबरें आयी थीं और न ही माँ को याद करने की। पर जब उनके पुत्र के घर शिशु जन्म हुआ तो वे खुशी खुशी सबको याद करने लगे। अभिषेक की नानी ने भी कहा कि हमने तो पहले ही कहा था कि लक्ष्मी आयेगी। उन्हें भी आम आदमी की तरह पुत्री के जन्म के हीनता बोध को लक्ष्मी के आने से से पूरी करने का विचार आया, सरस्वती आने का विचार नहीं आया जबकि कलाकारों के परिवारों को तो सरस्वती की कल्पना करना चाहिए थी। एक लोकप्रिय फिल्मी परिवार में किसी को बहुत दिनों तक छुपा कर नहीं रखा जा सकता किंतु जिज्ञासाएं बढा कर महत्व बढाया जा सकता है। ब्रांड बन गये परिवार में इसका भी महत्व होता है।