Wednesday, July 18, 2012

विद्रोह ( नक्सल जैसे ) की राह पर कांग्रेस का गढ़ ..

रायबरेली अमेठी शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ माना जाता है , और हो भी क्यू नहीं इस क्षेत्र ने भारत को कई प्रधान मंत्री दिए हैं उन्होंने अपने कार्यकाल में इस क्षेत्र के विकास में कोई कसर भी नहीं छोड़ी साथ ही इसे विश्व मानचित्र पर चर्चा दिलाई.. किन्तु धीरे धीरे यहाँ सामाजिक असमानता की जड़े गहराती जा रही है जिसका असर हाल में हुए विधान सभा चुनाव में दिखाई पड़ा जिसमे इस क्षेत्र में कांग्रेस ने पूरानी सातों सीटे गँवा दी और नतीजे भी जल्द ही सबके सामने होगे.
    नेहरु जी ने प्रादेशिक असमानता को दूर करने के लिए आंध्र और झारखण्ड में कोल से लेकर स्टील फैक्टरी लगवाई थी जिससे social imbalance को मिटाया जा सके किन्तु जब वहां के स्थानीय निवासियों ने देखा की उनके पास खाने को नहीं है और उनकी जमीनों पर महल बन रहे हैं पार्टिया चल रही है तो धीरे धीरे आक्रोश बढ़ने लगा और समस्या नक्सल के रूप में आज सबके सामने है .. इस घटना से सबक लेते हुए इंदिरा जी ने जब रायबरेली का प्रतिनिधित्व करते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली तो इस क्षेत्र के लोगो के विकास के लिए उद्योग धंधो को प्रोत्साहन देने लगी .. हालाकि उनकी सब्सिडी के चक्कर में बहुत से बाहरी लोग यहाँ आये और सब्सिडी खाकर कारखानों में ताला डालकर रफूचक्कर हो गए .. इस सब के बावजूद उस समय यहाँ के लोगों में संतोष था की उन्हें नौकरी तो मिल ही रही है और उनका गुस्सा दबा रह गया था .. चाहे रायबरेली की इन्डियन टेलीफोन इंडस्ट्री हो या इंदिरा गाँधी उड़ान अकादमी हो सब जगह जमीन के मुवावजा तो मिला ही  साथ बाबु और चपरासी तो कम से कम रायबरेली के ही रखे गए थे.. 
        राजीव गाँधी के बाद ये इलाका बदहाली के कगार पर पहुच गया और उपेक्षित सा रहने लगा , सोनिया और राहुल के मैदान में आने के साथ बड़े बड़े भाषणों से लोगो को उम्मीद की किरण दिखाई पड़ी जो पास आते आते बुझ गयी , राहुल ने इस क्षेत्र को शिक्षा का हब बनाने की इच्छा जताई, और इसके साथ ही नेशनल और इंटर नेशनल शिक्षण संस्थाओं के प्रपोसल आने शुरू हो गए , एक बार फिर किसानो की जमीनों के अधिग्रहण का खेल शुरू हुआ.. लेकिन इस बार बदले में सिर्फ कुछ पैसा था नौकरी की गारंटी नहीं थी , कम पढ़े लिखे किसानो ने अपने लिए बाबु तो दूर की बात है चपरासी तक की नौकरी नहीं मांगी और मुआवजे में मिले पैसे का सही उपयोग न कर अनाप सनाप खर्च कर सड़क पर आ गए ..  आज दाने दाने को मोहताज ये किसान इन बहुमंजिला इमारतों की तरफ देख कर अपने बच्चो से  सिर्फ इतना कहते हैं की यहाँ बड़े बड़े साहब लोगों के बच्चे पढ़ते है ..
    रायबरेली अमेठी में खुले NIFT , NIPER , FDDI , RGPTI , RAYAN INTERNATIONAL तो शिक्षण संस्थाएं हैं जिनमे न तो रायबरेली के किसी व्यक्ति को नौकरी दी गयी न ही ऐसा कोई वादा किया गया किन्तु इस क्षेत्र में पहले से मौजूद BHEL में हाल ही में 180 लोगो की भर्ती की गयी जिसमे एक भी व्यक्ति रायबरेली अमेठी का नहीं है  , यही नहीं रेल कोच फैक्टरी के नाम पर MP और MLA  के चुनाव जीत चुकी कांग्रेस ने इस फैक्ट्री में गार्ड तक यहं के लोगो को नहीं रखा है स्वयं सोनिया जी ने निरिक्षण के दौरान मिली शिकायतों पर तत्काल कहा था की क्या लेबर भी बंगाल (ममता बनर्जी के क्षेत्र से) से आ रहे हैं .. लेकिन कुछ नहीं हुआ आज यहाँ लोग सिर्फ जमीन देकर खुद को ठगा सा महसूस करते है कई बार ये धरने पर बैठ जाते है तो कई बार फैक्टरी में घुसकर कम बंद करवा देते है  .. 
      नौकरी तो दूर की बात है विकास के नाम पर यहं और कई खेल परदे के पीछे चल रहे हैं जो आनेवाले दो तीन सालों में भयावह रूप में सबके सामने आ जायेंगे .. जैसे NHAI की रायबरेली और आसपास को जोडनेवाली सड़के जिनका पूरा भार यहाँ की जनता पर ही आना है . कांग्रेस ने अपने गढ़ में सड़कों की दुर्दशा पर प्रदेश सरकार से तालमेल न होने का रोना रोती रहती है इसके चलते ही रायबरेली को आसपास के जिलों से जोडनेवाली सडको को NH घोषित करवा दिया .. NHAI ने भी एक बढ़िया रास्ता निकल लिया इन रोड़ो की मरम्मत का और BOT (Build , operate, treansfer ) कर दिया जिसमे ठेकेदार पहले सड़के बनायेंगे , फिर उन पर लोगो को चला कर पैसे वसूलेगे और बाद में सरकार को ट्रांसफर कर देंगे , इन सडको में जो BOT की रकम रखी गयी है वो लगभग रायबरेली जौनपुर 756 करोड़ , रायबरेली कानपूर , रायबरेली लखनऊ और रायबरेली इलाहबाद 1300 करोड़ है .. लगभग 2000 करोड़ की इन सभी सड़कों का एक टर्मिनल रायबरेली है मतलब लगभग आधा यानि 1000 करोड़ वो ठेकेदार रायबरेली की जनता से ही वसूलेंगे ..
   रायबरेली के लोगों में आज आक्रोश इसी बात का है की सप्रग की सरकार ने रोजगार तो दिया नहीं सिर्फ खोखला करने की तयारी है .. यही वजह है की आज इस महंगाई के दौर में भी किसी को सस्ते मजदूर की जरूरत होती है तो वो रायबरेली आता है यहाँ स्थित NTPC में अज भी मजदूर 2007 के मजदूरी के हिसाब से कम करता है क्यों की उसके पास कोई विकल्प नहीं है .. वजह यही है की आज NH के साथ तमाम केंद्रीय योजनाओं के लिए लोग अपनी जमीन देने को तैयार नहीं है .. क्यों की उन्हें पता है जमीन रहेगी तो वो कम से कम खाने को मोहताज तो नहीं होंगे..