Thursday, November 24, 2011

दलित की मौत पर सियासत


रायबरेली में पुलिस की पिटाई से दलित रामचंदर की मौत क्या हुई मीडिया से लेकर गांव वालों ने उसका अपने अपने तरीके से पोस्ट मार्टम शुरू कर दिया , और मीडिया के पोस्ट मार्टम करते ही राजनीतिज्ञों के चेहरों की चमक बढ़ गयी मानों उन्हें इलेक्शन जीतने का पूरा मौका गरीब की मौत ही दे गया ,, और शुरू हो गयी लाश पर राजनीती ..
जरा सोचकर देखिये क्या ये वही उत्तर प्रदेश की पुलिस है जहाँ प्रशासन ने पुलिस बल में करीब साढ़े पाँच हजार सब इन्सपेक्टरों (एसआई) की खाली जगह को भरने के लिए महकमें के हेड कांस्टेबिलों को अपने सिपाहियों की चुस्ती फुर्ती आंकने के लिए फुर्ती टेस्ट करने का आदेश दिया था लेकिन पुलिस के इस फरमान से उत्तर प्रदेश के सुरक्षा दस्ते की जो हकीकत निकलकर सामने आई है वह न केवल पुलिस महकमे को बल्कि पूरे प्रदेश को शर्मसार करने के लिए काफी है. वरिष्ठ अधिकारियों की इस नादिरशाही फरमान से एक महीने के भीतर ही सौ से ज्यादा दीवान जी (हेड कांस्टेबल) गंभीर रूप से बीमार पड़ गये और अस्पताल के बिस्तर पर पहुच चुके हैं। तो वहीं करीब 6 से ज्यादा दीवान अ-समय ही काल के गाल में समा चुके हैं। पर समय समय पर इनका चेहरा भी बदलता रहता है, उत्तर प्रदेश में विशेषकर मायावती के मायावी शासनकाल में प्रदेश के कथित तेज-तर्रार खाकीवर्दीधारी पुलिसिया रणबांकुरों के कृत्यों-कु-कृत्यों का तो रायबरेली की घटना नमूना मात्र है, अब जरा रामचन्द्र का कसूर सुन लीजिये उसके बेटे दिलीप ने बबिता नाम की लड़की से शादी कर ली थी जिसमे विरोध और पारिवारिक उलझनों के चलते अलग अलग रहने की नौबत आ गयी थी लिहाजा आज की तारिख में दोनों अलग अलग रहते थे और बबिता की और से जीविकोपार्जन का मुकदमा दर्ज करवा दिया गया था.. चुकी दोनों डेल्ही में रहते थे और मुकदमा भी वही पंजीकृत था लिहाजा वारंटी दिलीप की गिरफ्तारी के बाद उसको पेशी पर खाखी के साये में डेल्ही ले जाया जाता था .. अपनी लापरवाही के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश की पुलिस के चंगुल से हरदोई के रेलवे स्टेशन से दिलीप 21 अक्टूबर को फरार हो गया , फिर क्या था शुरू हो गया खाकी वर्दीधारी इन रणबांकुरों का कारनामा, वो खाकी जिसे किसी भी सभ्रान्त व्यक्ति के घर में अपराधियों की तरह आधीरात में घुसनें में न तो शर्म आती है और न ही इन्हें निमय-कानूनों का डर ही लगता है। क्योंकि इनके सत्ताधारी माई-बाप इनकी हिफाजत के लिए ऊपर जो बैठे हैं दिलीप के पैतृक आवास पर रायबरेली पुलिस प्रशासन नें नंगनाच का जो शर्मनाक प्रदर्शन किया है वह किसी भी सभ्यसमाज को शर्मशार कर देनें के लिए पर्याप्त हैं। आधीरात में दर्जन भर से ज्यादा पुलिस कर्मी सरकारी गाड़ी से सायरन बजाते हुए महिला SHO रंजना सचान के नेतृत्व में रामचंदर के आवास पर पहुँची तथा घर का दरवाजा पीटनें लगी। उस समय घर के अंदर एक पचपन वर्षीय लाचार बुजुर्ग एवं उसकी पत्नी सावित्री ही घर में थी। दिलीप के बारे मौजूद न होनें की बात बताते हुए दरवाजा खोलने से इंकार दिया गया तो इन पुलिसिया रणबांकुरो नें अपनें जौहर का शर्मनाक प्रदर्शन करते हुए घर के पीछे से छत के रस्ते न सिर्फ अंदर ही घुस गए बल्कि महिला के साथ घण्टो तक अभद्रता करते हुए घर का सारा सामान विखरा कर कथित रूप से घर में छुपे हुए दिलीप की तलाश करते रहे। घर में दो के अलावा तीसरा कोई था ही नहीं तो फिर मिलता कौन? अन्त में अपनी इस कथित शर्मनाक बहादुरी का परचम लहराते हुए खाकी वर्दी के रणबांकुर वहाँ से रामचंदर को साथ लेकर प्रस्थान कर गए। रामचंद्र की थाने में जमकर आवभगत हुई करंट लगाने से लेकर गुप्तांग तक में चोट करने से नहीं चुकी महिला SHO ने बेशर्मी और मानवता को बहुत पीछे छोड़ दिया , दरोगा यदि सत्ता में ऊंची पहुच का हो तो कान बंद होना स्वाभाविक है वो चीखता रहा और ये पीटती रही नतीजा जुल्म न सह पाने के कारण रामचंद्र मौत के मुह में समां गया.. रोजन अपने इर्द गिर्द इस तरह की पुलिसिंग से परेशान रामचंद्र के गांव वालों ने लाश को जिलाधिकारी के आफिस के सामने रख़ कर खूब हंगामा काटा नतीजा ये हुआ की SHO रंजना सचान को लाइन हाजिर कर के उन पर ( 304 IPC ) गैर इरादतन हत्या के मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया गया .. और जाँच की बात की गयी किन्तु पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट में जब चोट की पुष्टि नहीं हुई तो लोगो को इस भ्रष्ट सिस्टम पर खूब गुस्सा आया और बात हरिजन योग के अध्यक्ष पी. एल. पुनिया के सामने पहुची प्रदेश की BSP सरकार से नाराज कांग्रेसी सांसद और अध्यक्ष पुनिया तत्काल लावलश्कर के साथ मौके पर पहुचे और दुबारा पोस्ट परतम के लिए कह कर चले गए , लेकिन 80 प्रतिशत से ज्यादा सड़ चुकी रामचंदर की लाश में दुबारा भी डाक्टरों की टीम कुछ नहीं दूंद पाई और मामला ज्यों का त्यों बना रह गया .. हा इस बीच रायबरेली की जिलाधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए छुट्टी के दिन दफ्तर खुलवाकर पीड़ित को 1,50 ,000 की चेक तहसीलदार के हाथ से भिजवाकर मरहम लगाने की कोशिश जरूर की.. वही राजनीतिक पार्टियों ने रामचंदर को न्याय के नाम पर साथ में फोटो खिचवा कर अपनी रोटिया सेकना शुरू कर दी हैं.. दरअसल मायावती शासनकाल में पुलिस हिरासत में हुई मौतों को ‘आत्महत्या’ में बदलनें में शायद प्रशासन को महारत हासिल है। उत्तर प्रदेश की पुलिस का ही यह कमाल है कि - जब ये पायजामें के नाडे़ और लॉकअप में लगे बल्ब के होल्डर से फाँसी लगवानें के साथ-साथ दस साल पहले मर चुके व्यक्ति से फर्जी हरिजन ऐक्ट के मुकदमें में गवाही दिलवा सकते हैं तो फिर लाकआप में पिटाई करते समय इन्हें किसका भय रहा होगा । उत्तर प्रदेश पुलिस न सिर्फ रस्सी को साँप साबित कर देने में माहिर है बल्कि वह जायज काम को नाजायज एवं नाजायज काम को जायज साबित करनें में पूरी तरह सिद्धहस्त है। ऐसे में ये हाल तब है जब प्रदेश की कमान एक दलित मुख्यमंत्री के हाथ में है , रामचंदर के परिवार को न्याय मिल पायेगा इसकी कल्पना करना भी मुमकिन नहीं है और अगर समाज सेवियों , मीडिया कर्मियों, खद्दर धारियों के निरंतर प्रयास से इस परिवार को न्याय मिल भी गया तो क्या इस ह्रदय विदारक घटना से इंसानियत पर जो दाग लगे हैं वो कभी धुल पाएंगे ??

1 comment:

  1. Yahi to dukh ki baat hai mahendra ki dalito k liye karna koi nhi chahta lekin politics sale sab karte hai.

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