Monday, August 1, 2011

दिग्गजों की राजनितिक भंवर में फंसी रायबरेली

रायबरेली का नाम कांग्रेस शाशित प्रदेशों में भले ही एक मंदिर (सोनिया जी ) के रूप में लिया जाता हो लेकिन हकीकत तो ये है की यहाँ की जनता सिर्फ रायबरेली के होने का अभिशाप झेल रही है ..दो पाटों के बीच में फंसा रायबरेली देश का इकलौता ऐसा जिला होगा जिसमे केंद्र सरकार से भेजे जा रहे विकास के करोडो रुपैये डाकार्नेवाले अधिकारीयों की पीठ प्रदेश सरकार थपथपा रही है, केंद्र सरकार की योजनाओं में प्रदेश और प्रदेश सरकार की योजनाओं में केंद्र छेद कर अपने आकाओं से खुद को पुरस्कृत करवा रहे हैं , चूंकि इस जिले में बी एस पी का एक भी विधायक नहीं है इसलिए विकास का पहिया शायद एक दम ठप है , इस जिले की दुरदशा हम आपको चाह कर भी एक बार में नहीं बता सकते इसलिए शुरुआत करते हैं सबसे पहले यहाँ की जर्जर विद्युत् व्यवस्था पर .. जर्जर का ये मतलब कतई नहीं है की पोल या तार ख़राब है जी नहीं इन पर तो सरकार ने 3500 करोड़ रुपैया खर्च कर चमका दिया है लेकिन इस जिले के बल्ब नहीं चमके ..कारखानों का शोर बंद सा हो गया है, और नरेगा जैसी योजनाओं के बन्दर बाँट से परेशां यहाँ का आम आदमी महानगर की तरफ रुख कर रहा है जहाँ राज ठाकरे जैसे सत्ता के भूखे भेड़ियों से खुद को बचाते हुए परिवार की दाल रोटी के लिए वो खुद को खपाए दे रहा है.. सोनिया मतलब सोनिया गाँधी जब यहाँ से चुनाव लड़ने आई तो लोगो को एक उम्मीद की किरण दिखी लोगो को इंदिरा गाँधी की याद आई और उन्हें लगा की हम सांसद नहीं प्रधान मंत्री चुन रहे हैं , लोगो को सपने आने लगे की अब हम रबड़ की सडको पर चलेंगे , हर हाथ में काम होगा , हर बच्चा स्कूल जायेगा , लोगो की बीमारी का तुरंत इलाज़ होगा , अब कोई भूख से नहीं मरेगा , लेकिन सपने तो सपने होते हैं उनको ये किरण सिर्फ दूर से ही दिख रही थी पास आते आते बुझ गयी दुनिया की ताकत वर महिलाओं में शुमार यहाँ की सांसद ने खुद को सूबे की मुखिया के आगे असहाय साबित कर दिया और इंदिरा जी के समय कुछ ज्यादा ही सम्मान पाए यहाँ के लोग एक बार फिर ठगे से रह गए .. अगर मौसम का मिजाज और हवा का रुख भांप कर यहाँ के लोग बीएसपी के साथ चले जाते तो शायद कुछ तो भला हो ही जाता.. आम चुनाव में सोनिया जैसे ही विजयी होकर डेल्ही पहुची उनके सामने समस्याओं का अम्बार लग गया जिसमे सबसे ज्यादा शिकायते किसानो के सूखे खेत और व्यापारियों के बंद हो रहे उद्योग थे कारण था बिजली की कम आपूर्ति .. इन समस्याओं का ओक्सिजन सिर्फ और सिर्फ सुचारू विद्युत् व्यवस्था थी .. प्रदेश सरकार की पहले मान मनौवल की गई कई तरह से डराया धमकाया गया लेकिन बात नहीं बनी तो केंद्र में बैठे सत्ता सीनों को अपनी ताकत NTPC याद आई जिसकी एक इकाई रायबरेली के उन्चाहर में भी स्थापित है लेकिन उससे पैदा होनेवाली बिजली का वितरण सुनिश्चित था लिहाजा उसमे एक अलग से unit 3000 करोड़ खर्च कर लगायी गई और उससे पैदा होनेवाली 210 MW बिजली सीधे रायबरेली को दी जाने लगी , इसके लिए 75 करोड़ में एक सब स्टेशन भी बना दिया गया, 24 घंटे की सप्लाई में बाधा न आये इसलिए 268.52 करोड़ की लागत से लाईने सही कर दी गयी किन्तु बिद्युत वितरण व्यवस्था राज्य सरकार के जिम्मे होती है सो उन्होंने इस सब स्टेशन की बिजली लखनऊ के पार्को को चमकाने के लिए आगे बाधा दी और नतीजा ढाक के तीन पात .. बिजली के लिए कांग्रेस सहित तमाम विरोधी दलों ने प्रदर्शन किये आरोप प्रत्यारोप का दौर चला , आमलोग एक जुट तो हुए लेकिन उनकी अगुआई करनेवाले बिक गए अब यहाँ के लोग अगली सरकार में रायबरेली की भागीदारी चाहते हैं चाहे वो किसी दल की हो , लेकिन लोग कशमकश में हैं की कांग्रेस के गढ़ से दुसरे को जीता कर विधान सभा पंहुचा दें या फिर कांग्रेस के लिए मेहनत कर इसको और मजबूत कर दे पर कहीं घोटालो में घिरी अगली सरकार केंद्र में न बन पाई तो क्या होगा रायबरेली का ??

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