Monday, August 29, 2011

सड़क पर हजारो हजारे

देर रात तक टीवी देखने के बाद जैसे ही सुबह 7 बजे नींद खुली देखा मोबाइल पर अन्ना समर्थको के दिन भर के कार्यक्रमों से मसेज बॉक्स भरा पड़ा है हर कोई समर्थन में प्रदर्शन करना चाह रहा है और उसकी कवरेज भी ऐसी चाह रहा है की दिन भर अन्ना की तरह टीवी स्क्रीन पर वही आये .. तैयार होकर निकलने की कोशिश की तो कुछ मित्र आ गये और अन्ना मुद्दे पर बहस छेड़ दी जैसे उन्होंने ही अन्ना के साथ बैठ कर ये जन्लोकपाल बनाया हो, इनसे किसी तरह पीछा छुड़ाया और आगे बढ़ा, मेरे घर से व्यस्त शहर की दूरी मात्र ३ किलोमीटर है जिसे मैंने 30 मिनट में तय की कारण गाँधी टोपी धारी जो पैदल जा रहे थे बार बार गाड़ी के सामने आकार इन्कलाब जिंदाबाद के बीच बीच मेरी फोटो ठीक से लेना जैसे नारे भी लगा रहे थे , अमूमन हर प्रदर्शन में ज्यादातर नेता होते हैं हैं और उन्हें कैमरे की ताकत पता होती है लेकिन यहाँ तो आम हिन्दुस्तानी था फिर कैमरे उनको क्यू आकर्षित कर रहे हैं ये सवाल मन में उठ रहा था, सवाल मन में हो और जवाब न मिले ऐसी बेचैनी कभी न कभी आपको भी हुई होगी..
उस भीड़ को देखने समझने से ही उलझन शांत हो सकती थी सो चाय की चुस्की के साथ लोगो को जरा गौर से देखना शुरू किया एक गाँधी टोपी लगाये हुए रौबदार चेहरे पर नजर रुकी तो दिमाग के सर्च इंजन ने कुछ सेकंडों में उसका पूरा बायोडाटा सामने पेश कर दिया जनाब कुछ दिन पहले ही सरकारी मेहमान नवाजी से लौटे थे कारण था प्रोपर्टी के विवाद में अपने ही बड़े भाई को मौत की नींद सुलाने का लेकिन आज अगर आसाराम बापू या श्री श्री रविशंकर जी मौके पर होते तो निश्चित ही इनके शिष्य बन जाते ...
भीड़ दूसरी तरफ से भी आ रही थी जिनके हाथो में तिरंगे थे बच्चे शायद इसलिए जुड़ते हैं क्यों की उन्हें अनुशाशन तोड़ने की आजादी मिलती है वानर सेना का नाम सुना था देख कर मजा आया, बुजुर्गो को एक मुद्दा मिलता है जिसमे जिन्दगी भर के अनुभवों को जोड़कर काफी समय काटा जा सकता है कोई रिटायर्ड अधिकारी है तो कोई बाबू कल तक जो अन्ना को जानते नहीं थे वो आज उन पर घंटो बोल सकते हैं लेकिन इनके बीच जो मौका परस्त घुस आये हैं उनको पहचानने की जरुरत है लोगो से ठगी करनेवाले सख्स भी थे इसमें जिनके कारनामे सुनकर विश्व के प्रसिद्द ठग नटवरलाल भी शरमा जाते लेकिन आज उनकी ही आवाज बुलंद थी . अन्ना बेशक बेदाग हैं लेकिन उनके चेहरे की उजली चमक में कई काले चेहरे वाले खुद को पाक करने की कोशिश कर रहे हैं ये उन्हें भी ध्यान देना चाहिए भीड़ में कोई रिश्वत खोर तो कोई बेईमान है.. ढूँढने में शायद ही इसमें कोई अन्ना जैसे निकले लेकिन मैं अन्ना हूँ की टोपी हर सर पर मिल जाएगी और खास कर जब मीडिया के कैमरे चमक रहे हों तो .....

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