केंद्र सरकार इन दिनों रोज एक नई मुसीबत में घिर जाती है कभी आदर्श घोटाला, तो कभी CWG घोटाला, कभी 2G मुद्दा तो अभी काला धन मुद्दा, कुछ दिनों से विपक्ष की मानो लाटरी लग गई हो और कांग्रेस रोज सिर्फ बचाव के रास्ते ही तलासते नज़र आती है लेकिन विपक्ष हंगामा करे तब तक तो ठीक था लेकिन इनसे ऊब कर बाबा और समाजसेवी लड़ने के लिए मैदान में कूद जायेंगे ऐसी उम्मीद सत्ताधारी पार्टी को बिलकुल नहीं थी..अगर बात अन्ना हजारे की करे तो इनके हौसले वर्ष 2003 से बुलंद हैं जब तत्कालीन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता और राज्य मंत्री जैन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। हजारे के आरोप पर सत्तारूढ़ कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार ने जैन और दो अन्य मंत्रियों नवाब मलिक और पद्मसिंह पाटिल के खिलाफ जांच के आदेश दिए। जांच रिपोर्ट के बाद जैन और मलिक को मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद जैन ने अन्ना हजारे के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया
लगभग एक साथ शुरू हुए दो आन्दोलनों में एक की हवा तो पहले ही निकल चुकी है बेहद शातिर कांग्रेसियों ने बाबा के लिखे समझौता पत्र को सार्वजानिक कर उनकी अति महत्वाकांक्षा को जनमानस के सामने लाकर उनके आन्दोलन का सत्यानाश तो पहले ही कर दिया रही सही कसर आधी रात को पूरी कर दी जिसमे उहापोह की स्थिति में नारी वेश में भागते हुए बाबा को बाद में पूरी दुनिया ने देखा.. केंद्र के मदारी बने दिग्विजय के इशारे पर सम्पतियों से लेकर पासपोर्ट तक की जाँच शुरू हुई और बेचारे मासूम से दिखने वाले कथित आचार्य बालकृष्ण बलि का बकरा बन गए ..CBI के तीखे सवालों का कई घंटों तक सामना करने की परेशानी ने उनके चेहरे की हवाइयां उडा दी फिर अब इस जाल में फंसने के बाद दूसरा कोई रास्ता भी तो नहीं है .. जितनी बार रामदेव प्रेस बुला कर अपने को पाक साबित करने की कोशिश करते हैं उतना ही मीडिया के सवालों के जाल में फंस कर भाग खड़े होते हैं . ऐसे में अपनी बनी बनायीं साख को चंद दिनों में ही मटिया मेट करने का पूरा श्रेय खुद उनको और इतने गंभीर मुद्दे के साथ जल्दबाजी करने को ही जाता है .. बिना टीम बनाये खुद को कप्तान माननेवाले के लिए चार लाइन हैं..
"भीड़ में जो खुद की नुमाई कर रहा है
मानो जग हसाई कर है
जरा सा जोश क्या दरिया में आया
समुन्दर की बुराई कर रहा है "
कौन सच्चा कौन झूठा फिल्म में उनका क्या होगा ये तो वही जाने बात करते हैं दुसरे गाँधी की मतलब अन्ना हजारे, अन्ना हजारे का नाम जेहन में आते ही एक बेहद इमानदार मराठी टोपी लगाया हुआ व्यक्तित्व सामने आता है मतलब सवा करोड़ की आबादी में सिर्फ एक इमानदार चेहरा , जो सिर्फ इमानदारी के लिए 16 अगस्त से अपनी जान देने पर अमादा है, सरकार ने रोकने की कोशिश की उनकी बाते भी मानी लेकिन शत प्रतिशत नहीं.. बाबा रामदेव को आधी रात को खदेड़ने के मामले में अपनी किरकिरी करा चुकी सरकार ने अन्ना की ख़ुदकुशी का पाप अपने सर नहीं लेना चाहती इसलिए उन्हें पहले ही अनुमति न देकर डेल्ही से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, लेकिन जिद्दी अन्ना अपने इरादों में डेट है ...जब से सिविल socity बनी है और उसमे अन्ना हजारे, किरण बेदी अरविंद केजरीवाल प्रशांत भूषण जैसे लोग शामिल हुए हैं देश की जनता के सामने इनके असली चेहरे लाने की कवायद ( CD प्रकरण भूमि आवंटन ) इनके विरोधियों ने शुरू कर दी , इन्होने अपने बचाव में बहुत कुछ कहा लेकिन अब ये टीम इस बात पर अमादा है की सवा अरब भारतियों में अक्ल और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का माद्दा केवल इनके ही पास है ये किसी के गले नहीं उतर रहा है .. लोगो को समझ में नहीं आ रहा की खुद को भीम समझनेवाले अन्ना ने रामदेव का सहयोग लेने से इनकार कर दिया तो गांव गांव जाकर इसके लिए जनमत संग्रह क्यों कर रहे हैं ? जब कोई विरोधी पार्टी का सदस्य इनके मंच पर आकर इस मुहीम में अपना समर्थन देना चाहता है तो उसे ये स्वयम्भू लोग क्यों रोक देते हैं.. दिखावे के लिए ही सही वो आपका साथ देने तो आया ही है और इस बात की क्या गारंटी है की जिससे आप दस्तखत करवा रहे है वो सच में दिल से आपके साथ हो .. जब सरकार लोकपाल कानून बनाकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना चाहती है तो फिर मरने की जिद क्यों ? लोकतान्त्रिक देश में ये जरूरी है क्या की किसी को ब्लैक मेल कर अपनी मर्जी का कानून बनवा कर ही दम लिया जाय .. कही इनको मीडिया के कैमरों की चमक की लत तो नहीं लग गई ?
दरअसल इण्डिया अगेंस्ट करप्शन को चंदा देश के कुछ बड़े उद्योगपति दे रहे हैं और उन्होंने बाकायदा इसकी स्क्रिप्ट भी लिखी है सच तो ये है की 2G घोटाले के बाद इन उद्योगपतियों को लगने लगा की अब वक़्त आ गया है जब जनता को गुमराह कर एकदम से माहौल बदल दिया जाये, उनकी लिखी स्क्रिप्ट को कानून का रूप देने के लिए पीछे से उनका दमखम लगा है और मासूम अन्ना इस बात के लिए अड़े है की ये विश्व का सबसे अच्छा ड्राफ्ट है है यही कानून पास होना चाहिए जबकि देश की जनता जानती है की कानून बनाना संसद का काम है .. अगर अन्ना सच में चाहते हैं की उनका ड्राफ्ट ही final हो तो विपक्ष से मिलकर उन्हें इसमें संशोधन करवाना चाहिए न की जान देना चाहिए ..क्यों की संसद में कानून बनने पर विपक्ष की भूमिका भी होती है . खैर अन्ना अपनी बात मनवाने के लिए जनमत संग्रह कर रहे हैं जिसमे सोनिया गाँधी का संसदीय क्षेत्र रायबरेली और कपिल सिब्बल का संसदीय क्षेत्र चांदनी चौक है जहाँ उनका दावा है की उन्हें जन्लोकपाल के लिए 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगो ने समर्थन दिया लेकिन जब आप दुनिया को भ्रष्ट बताने पर तुले है तो आपके इस संग्रह की वैधानिकता पर प्रशनचिंह अपने आप लग जाता है.. ऐसे में अन्ना का हश्र भी बाबा जैसे न हो इसके लिए उन्हें स्वविवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और किसी की कठपुतली बन ने से बचना चाहिए ..
lagta hai congress ka hath aapke saath hai
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